मिशाल
सोमवार, 6 जनवरी 2025
मिशाल: राजस्थान के इस सख्श ने एक साथ दो सगी बहनों से की शादी
मंगलवार, 3 जुलाई 2012
बिहार: बेटियों ने दिखा दिया अपना दम
उसके पिता डेयरी का छोटा-मोटा कारोबार चलाते हैं. मां घर संभालती हैं जबकि बड़ी बहन ट्यूशन पढ़ाकर घर की आर्थिक तंगी को दूर करने में परिवार का सहयोग करती है. दो और बहनें बीए की पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही हैं. तीन बहनों के जारी एकेडेमिक अभियान में उसने सफलता की नई इबारत गढ़नी शुरू कर दी है.
भोजपुर जिले के नवादा मोहल्ले की राधा कुमारी वर्मा तमाम मुश्किलों के बावजूद बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड-2012 की मैट्रिक परीक्षा में 92 फीसदी अंक लाकर स्टेट टॉपर रैंकिंग में तीसरे स्थान पर रही. डीएनसीएस गर्ल्स हाइस्कूल आरा की राधा कहती हैं, ''मम्मी-पापा ने कभी कोई फर्क नहीं किया और वे मुश्किलों के बावजूद मेरी पढ़ाई से जुड़ी जरूरतों का खास ख्याल रखते रहे हैं.''
दरअसल, राधा की मां मैट्रिक और पिता इंटर पास हैं. वे लोग पारिवारिक परेशानियों के कारण उस मुकाम को हासिल नहीं कर पाए, जैसा चाहते थे. लिहाजा, बेटियों के कॅरियर में ओम प्रकाश वरनाला अपनी सफलता देख रहे हैं. राधा जब आठवीं में पढ़ती थी तब राष्ट्रीय प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में चुनी गई थी, तब से हरेक माह उसे 500 रु. की स्कॉलरशिप मिलती रही है. राधा अब बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर बनकर परिवार के अरमानों को आकार देना चाहती है.
उसी स्कूल की प्रीति सोनी 92.8 फीसदी अंक लाकर राज्य में दूसरे स्थान पर रही है. प्रीति के पिता उमाशंकर गुप्ता ज्वेलरी की दुकान चलाते हैं, जबकि मां गीता देवी गृहिणी है. वह न सिर्फ दो छोटी बहनों और दो भाइयों के लिए बल्कि समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बनकर उभरी हैं. वे आइएएस बनना चाहती है.
स्टेट टॉपर के पहले पायदान पर भी बिटिया ही रही है. पटना जिले के यमुनापुर की नव्या यादव 93 फीसदी अंकों के साथ स्टेट टॉपर रही है. उनकी मां बबीता यादव गृहिणी और पिता सत्येंद्र यादव आइटीआइ में इंस्ट्रक्टर हैं, उनके तीन बेटियां और दो बेटे हैं.
अगर बिहार बोर्ड के टॉपरों के पिछले रिकॉर्ड को देखें तो औसतन 10 साल में भी बेटियां टॉपर नहीं बन पाती थीं. 2006 के पहले तक आधे दर्जन से भी कम लड़कियां स्टेट टॉपर की सूची में रहीं. लेकिन जब से लड़कियों की शिक्षा को समाज और सरकार तरजीह देने लगी है, तब से बेटियां निरंतर नया रिकॉर्ड स्थापित करती रही हैं. लड़कियों के हौसले का असर समाज में दिखने भी लगा है.
लड़कियों के बारे में सत्येंद्र यादव की राय अलग है. वे कहते हैं, लड़कियां अपेक्षाकृत ज्यादा गंभीर होती हैं. समान मौका देने के बावजूद लड़कियों का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा है. नव्या खुद को सौभाग्यशाली मानती है, जिसे बेटों जैसा शिक्षा का अवसर मिला. अन्यथा तीन किमी दूर मोरियावां स्थित धनुषधारी सर्वोदय हाइस्कूल से पढ़ाई आज भी सब के लिए
संभव नहीं है. नव्या कहती हैं कि स्कूल के अलावा हर रोज छह घंटे मेहनत करती थी. वह इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस की परीक्षा देना चाहती है. इस साल टॉप-टेन रैंकिंग की सूची में 18 परीक्षार्थियों में से 11 लड़कियां हैं. 2011 में घनश्याम गर्ल्स हाइस्कूल खगौल की शालिनी यादव, 2010 में नालंदा जिले के बिहारशरीफ एस.एस.गर्ल्स हाइस्कूल की अनुपम नेहा और 2006 में गर्ल्स हाइस्कूल नवगछिया की रजनी रंजन स्टेट टॉपर रहीं.
यही नहीं, इंटरमीडियट की परीक्षा में भी लड़कियों का प्रदर्शन बेहतर रहा है. मुजफ्फरपुर जिले के कांटी ब्लॉक के खजूरी के किसान नत्थू महतो की बेटी रीता कुमारी आर्ट्स फैकल्टी में राज्य में दूसरे स्थान पर रही है. गांव और गरीबों की बेटियों की दास्तां यहीं नहीं थमती. औरंगाबाद जिले के देव ब्लॉक के दीवान विगहा की सबीना प्रवीण उसी कड़ी का अहम हिस्सा है. उसके पिता मो. लईक अहमद और मां आबदा खातून गांव में किराना दुकान चलाते हैं. आर्थिक तंगहाली के कारण वे सबीना का साइंस में दाखिला नहीं करा पाए थे, लेकिन उसने आर्ट्स में 83.4 फीसदी अंकों के साथ आठवें स्थान पर आकर अपनी प्रतिभा का अहसास करा दिया है.
आर्ट्स की परीक्षा में पूर्वी चंपारण के एचएसवी कॉलेज रामगढ़वा के संदीप कुमार चौबे टॉपर रहा, लेकिन टॉप-10 के 19 परीक्षार्थियों में से 16 लड़कियां रही हैं.
एमआरजेडीआइ कॉलेज बेगूसराय का पीयूष अव्वल रहा, लेकिन थर्ड टॉपर उसकी बहन इला ही रही है. खास यह कि टॉप-15 की सूची में 19 परीक्षार्थी हैं, जिनमें से 9 लड़कियां हैं.
कॉमर्स में भी लड़कियों का दखल बढ़ा है. 2012 के टॉप टेन में 15 परीक्षार्थियों में से 8 लड़कियां हैं. टॉपरों की सूची में गया कॉलेज गया की मौसमी कुमारी बिहार में तीसरे स्थान पर रही है. मौसमी की कहानी संघर्ष भरी रही है. 2001 में उसके पिता नवल किशोर सिंह की सड़क हादसे में मौत हो गई थी. फिर भी पढ़ने की जिद ने उसे एक नई पहचान दी है. मौसमी अपनी सफलता का श्रेय मां उर्मिला देवी को देती हैं.
बिहार बोर्ड के रिजल्ट के मौके पर मानव संसाधन विकास विभाग के मंत्रीे पी।के। शाही ने कहा, ''पढ़ाई के बेहतर माहौल के कारण ऐसा बदलाव हो रहा है, जो राज्य में शिक्षा की बदलती तस्वीर को पेश करता है। लड़कियों के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। लड़कियों का बेहतर प्रदर्शन उसी का नतीजा है।'' उन्होंने पिछले साल की तरह इस साल भी टॉप-10 परीक्षार्थियों को लैपटॉप देने की घोषणा की है।
अरविंद महिला कॉलेज पटना के प्रोफव्सर डॉ। अरुण कुमार मानते हैं कि सरकारी योजनाओं के अलावा बेटियों के प्रति सामाजिक नजरिया बदला है, जिसके कारण लोग बेटियों की शिक्षा की जरूरत पहले से ज्यादा महसूस करने लगे हैं।
2011 की प्रोविजनल जनगणना रिपोर्ट में बदलाव के स्पष्ट संकेत मिल जाते हैं। महिला साक्षरता की दशकीय वृद्धि में 20 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है, जो देश की सर्वाधिक साक्षरता बढ़ोतरी दर है।
बेशक, साइकिल, ड्रेस और स्कॉलरशिप जैसी योजनाओं के अलावा कई विभागों की सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था ने उन लोगों को भी राह दिखाई है, जो लड़कियों को 'पराया धन' मानते थे। बहरहाल, लड़कियों का यह प्रदर्शन न सिर्फ भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसी कुप्रथाओं से मुक्ति का कारण बन रहा है, बल्कि स्वावलंबन का मजबूत आधार भी बन रहा है।
रविवार, 19 सितंबर 2010
अंधा सब कुछ देख सकता है
सोमवार, 23 अगस्त 2010
यहां मुर्दे भी करते हैं आलू व प्याज की खेती
नवगछिया प्रखंड में आलू एवं प्याज की खेती मुदरें द्वारा की जा रही है। खेती में हुई क्षति का भुगतान भी सरकारी सेवक द्वारा मुदरें को किया गया है। जानकारी के मुताबिक नवगछिया प्रखंड के नगरह पंचायत के मुखिया डोमन हरिजन एवं पंचायत सेवक नरेन्द्र द्वारा लगभग एक लाख रुपये का भुगतान आलू प्याज की खेती में हुई क्षति के लिए मुर्दो को किया गया है। जबकि जानकारों के अनुसार पूरे नवगछिया प्रखंड में इक्का-दुक्का लोग निजी उपयोग के लिए आलू-प्याज की खेती करते हैं। लेकिन नगरह पंचायत के दर्जनों लोगों द्वारा आलू-प्याज की खेती की गई है। इतना ही नहीं आलू-प्याज की क्षतिपूर्ति मुखिया एवं पंचायत सेवक के द्वारा अपने चहेते एवं एक ही परिवार के कई लोगों को क्षतिपूर्ति का भुगतान भी किया गया है। इनके साथ-साथ ऐसे लोगों का भी नाम भुगतान सूची में दर्ज है जो कई सालों पहले मर चुके हैं। इस मामले से संबंधित नगरह गांव के ही 206 व्यक्तियों के हस्ताक्षर युक्त आवेदन राजस्व के दुरुपयोग हेतु प्रखंड विकास पदाधिकारी नगवछिया एवं अनुमंडल पदाधिकारी नवगछिया को भी सौंपा गया है। जिस पर इसी पंचायत के उप सरपंच संजय कुमार सिंह, सात नम्बर वार्ड के सदस्य विभाष हरिजन, पांच नम्बर वार्ड के सदस्य कविता देवी, पंच सदस्या मुन्नी देवी, तीन नम्बर वार्ड के सदस्य सुमित्रा देवी, चार नम्बर वार्ड के सदस्य रानी देवी, विकास मित्र कन्हैया कुमार ने भी मोहर सहित हस्ताक्षर किया है। ग्रामीणों द्वारा दिये गये आवेदन में कहा गया है कि बाला, आनन्दी यादव, राजा राम चौधरी, चलितर मालाकार एवं रघुनाथ सिंह की मृत्यु हो चुकी है, जिन्हें भी आलू प्याज के लिए क्षति पूर्ति का भुगतान किया गया है। ग्रामीणों के अनुसार बाला हरिजन की मृत्यु बीस साल पहले हुई है, आनन्दी यादव की साल भर पहले, राजा राम चौधरी की 15 साल पहले तथा चलितर मालाकार की पांच साल पहले मृत्यु हो चुकी। इसके साथ-साथ मुखिया के परिजन एवं सगे संबंधियों व समर्थकों के परिजनों के नाम से आलू प्याज की खेती में क्षति पूर्ति का भुगतान दिखाया गया है। जिनमें से कुछेक नाम ऐसे भी हैं जो लोग गांव में रहते ही नहीं हैं। इस बाबत प्रखंड विकास पदाधिकारी वीणा कुमारी चौधरी ने बताया कि पंचायत सचिव से संपर्क किया जा रहा है। संपर्क होने पर मामले की जांच की जायेगी । अगर ऐसा भुगतान हुआ होगा तो राशि की वापसी करायी जायेगी। अनुमंडल पदाधिकारी सुशील कुमार ने भी मामले की जांच करने की बात कही है।
सोमवार, 11 जनवरी 2010
भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा कृष्ण कुमार यादव को ‘’ज्योतिबा फुले फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2009‘‘

(अनुराग), सचिव- ‘‘मेधाश्रम‘‘ , 13/152 डी (5) परमट, कानपुर (उ0प्र0)
शनिवार, 26 दिसंबर 2009
..आखिर कर ही डाला सुराख
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। उपरोक्त पंक्ति को नवगछिया के बेरोजगारों ने सच कर दिखाया है। जी हां, रोजगार तलाशते बेरोजगार हाथ थक हारकर अब अपनी सोच और बुद्धि से कम पूंजी में अच्छी कमाई का एक जरिया ढूंढ चुके हैं। आज इसी कमाई से इनके घरों में दो वक्त की रोटी आती है। राष्ट्रीय उच्च पथ एवं अन्य प्रमुख सड़कों के किनारे ऐसे बेरोजगार हाथ गाड़ी सर्विसिंग का अपना धंधा शुरू किया है, जिसमें न आय प्रमाण पत्र का झंझट न जाति और शैक्षणिक योग्यता तथा बिक्री कर प्रमाण पत्र का लफड़ा। न निबंधन का टेंशन न किसी को घूस और पैरवी करने की जरूरत। बस थोड़ी सी पूंजी और खुद की मेहनत से संचालित इस धंधे से इनका पूरा परिवार आज खुशहाल है। लगभग दर्जन भर छोटे-मोटे सर्विस सेंटर बेरोजगारों द्वारा खोले जा चुके हैं। जिन्हें बढ़ती मोटरसाइकिलों एवं अन्य गाडि़यों की धुलाई एवं सफाई करने से कोई परहेज नहीं। इससे जहां उन्हें अच्छी मजदूरी मिली जाती है। वहीं न तो किसी का रोब सहना होता है न नौकरशाही। इस धंधे के मालिक वो खुद होते हैं। इस धंधे में जुड़े गोपालपुर लतरा नवटोलिया के अरुण जो राजमार्ग के किनारे मोटरसाइकिल धुलाई कर पांच बेटी, एक बेटा का भरण-पोषण कर रहे हैं। बताते हैं कि पहले वो गांव में खेती करते थे, पर उससे पेट भरना तो दूर महीनों खर्च में वो महाजन के बोझ तले दब जाते थे। बताते हैं कि दिन भर में लगभग 15 से 20 मोटरसाइकिल की धुलाई-सफाई कर परिवार का गुजारा चैन से चला रहे हैं। इनकी मजदूरी भी मात्र 20 रुपए हैं जो गाड़ी मालिक भी सहर्ष दे देते हैं। धंधे की लागत के संबंध में अरुण कुमार बताते हैं कि मोटर, पंप, इंजन खरीदने के अलावा बोरिंग कराने से लेकर पाईप व नोजल में लगभग 35 से 40 हजार की लागत आती है। इस धंधे में अरुण सिंह सरीखे सिकंदर सिंह, कुमोद मंडल, मुन्ना सिंह आदि दर्जनों लोगों का कहना है कि रोजगार तलाशने के लिए प्रदेश जाने और सरकारी योजनाओं के पीछे भागकर अपना समय गंवाने से अच्छा अपना यह रोजगार है। बता दें कि नवगछिया में गाड़ी सर्विसिंग का धंधा पूर्व में महज एक ही जगह एसपी कोठी के समीप हुआ करता था, जो मजदूरों के बाल बूते चलाया जाता था। पर मजदूरी बढ़ने के साथ वहां मजदूर घटते गए और स्थिति यह हुई कि सर्विस सेंटर बंद हो गया।
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009
पहाड़ का सीना काट निकाली जीने की राह
जमशेदपुर में कभी दूर-दूर तक बंजर जमीन और सख्त मिजाज पहाड़ ही नजर आता था। आज चारों तरफ हरियाली इठलाती दिखती है। यह चमत्कार किसी सरकारी योजना की बदौलत नहीं, धरती पुत्रों की मेहनत का प्रतिफल है। पटमदा प्रखंड में लायलम पंचायत के वनगोड़ा गांव के ग्रामीणों ने हाड़तोड़ मेहनत कर धरती मां का श्रृंगार किया है। इन्होंने पहाड़ का सीना काट खुद ही जीने की राह निकाली है। गांववालों के श्रमदान से बने तालाब की बदौलत वनगोड़ा समेत पांच गांवों की तकदीर बदल गई है। यहां के किसान इस तालाब के पानी से अपने खेतों को सींच सब्जी और धान पैदा कर रहेहैं। कभी बंजर पड़े रहने वाले खेत अब सोना उगल रहे हैं।
जमशेदपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर दलमा पहाड़ के बीच पटमदा प्रखंड के लायलम वनगोड़ा समेत भुइयांसिनान, मिजुर नाका, कोरता कोल, गोलखेरना व कई अन्य गांवों के लोग खेती के लिए भगवान भरोसे रहते थे। साल में अगर ठीक-ठाक पानी बरसा तो कुछ महीने के लिए दो जून के खाने का इंतजाम हो गया, वरना पेट पर हाथ रखकर सोना पड़ता था। भरपूर फसल न होने के कारण ग्रामीणों को मजदूरी करने के लिए कई-कई महीने तक गांव से दूर भी रहना पड़ता था। वर्ष 2007 में जन संगठन झारखंड मुक्ति वाहिनी के मदन मोहन, अरविंद अंजुम, दिलीप, दिलीप सोरेन, दीपक आदि ने खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता को समझा। इन लोगों ने ग्राम प्रधान देवेंद्र सिंह को श्रमदान से तालाब बनवाने के लिए न केवल प्रेरित किया, बल्कि इसके लिए आवश्यक आर्थिक संसाधन भी जुटाए। इसके बाद ग्राम प्रधान देवेंद्र सिंह की देखरेख में ग्रामीणों ने तालाब की खुदाई शुरू हुई। पहाड़ को काटना आसान काम नहीं था। लेकिन राम प्रसाद टुडू, रूपा टुडू, हाड़ी राम हांसदा, धनंजय सोरेन, गंधेश्वरी टुडू, चांदमुनी, सावंती, श्रीमती हांसदा, लखी राम, भजो हरि, मंगल, सुखराम, रबी लाल, सुखमुनी, फूलमुनी, सूरजमुनी, सुकुरमुनी, पिड़ाकी हेम्ब्रम, बेनाती, लुगु मुनी समेत तमाम ग्रामीणों ने एक साल तक हाड़तोड़ मेहनत के बाद चार-पांच फीट गहरा और 700 फीट की परिधि का गड्ढ़ा तैयार कर लिया। वनगोड़ा के ग्रामीण राम प्रसाद टुडू बताते हैं- लगभग 40 स्त्री-पुरुष रोज आठ से दस घंटे तक खुदाई करते थे। साल भर की मेहनत से तैयार हुए तालाब में वर्षा होने पर पानी भरा। अब वनगोड़ा समेत पांच गांवों के लोग इस तालाब के पानी से अपने खेतों में सिंचाई कर धान और सब्जी उगाते हैं। ग्राम प्रधान देवेंद्र सिंह कहते हैं-तालाब खुदाई के एक वर्ष बाद ही यहां की स्थिति बदल गई। अब वनगोड़ा, मिजुर नाका, भुइयां सिनान, कोरता कोल और गोलखेरना का कोई नवयुवक मजदूरी करने परदेश नहीं जाता। तालाब के पानी से धान और सब्जी पैदा कर गांव के लोग मजे में जीवन गुजार रहे हैं।