शनिवार, 26 दिसंबर 2009

..आखिर कर ही डाला सुराख


राजेश कानोडिया
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो। उपरोक्त पंक्ति को नवगछिया के बेरोजगारों ने सच कर दिखाया है। जी हां, रोजगार तलाशते बेरोजगार हाथ थक हारकर अब अपनी सोच और बुद्धि से कम पूंजी में अच्छी कमाई का एक जरिया ढूंढ चुके हैं। आज इसी कमाई से इनके घरों में दो वक्त की रोटी आती है। राष्ट्रीय उच्च पथ एवं अन्य प्रमुख सड़कों के किनारे ऐसे बेरोजगार हाथ गाड़ी सर्विसिंग का अपना धंधा शुरू किया है, जिसमें न आय प्रमाण पत्र का झंझट न जाति और शैक्षणिक योग्यता तथा बिक्री कर प्रमाण पत्र का लफड़ा। न निबंधन का टेंशन न किसी को घूस और पैरवी करने की जरूरत। बस थोड़ी सी पूंजी और खुद की मेहनत से संचालित इस धंधे से इनका पूरा परिवार आज खुशहाल है। लगभग दर्जन भर छोटे-मोटे सर्विस सेंटर बेरोजगारों द्वारा खोले जा चुके हैं। जिन्हें बढ़ती मोटरसाइकिलों एवं अन्य गाडि़यों की धुलाई एवं सफाई करने से कोई परहेज नहीं। इससे जहां उन्हें अच्छी मजदूरी मिली जाती है। वहीं न तो किसी का रोब सहना होता है न नौकरशाही। इस धंधे के मालिक वो खुद होते हैं। इस धंधे में जुड़े गोपालपुर लतरा नवटोलिया के अरुण जो राजमार्ग के किनारे मोटरसाइकिल धुलाई कर पांच बेटी, एक बेटा का भरण-पोषण कर रहे हैं। बताते हैं कि पहले वो गांव में खेती करते थे, पर उससे पेट भरना तो दूर महीनों खर्च में वो महाजन के बोझ तले दब जाते थे। बताते हैं कि दिन भर में लगभग 15 से 20 मोटरसाइकिल की धुलाई-सफाई कर परिवार का गुजारा चैन से चला रहे हैं। इनकी मजदूरी भी मात्र 20 रुपए हैं जो गाड़ी मालिक भी सहर्ष दे देते हैं। धंधे की लागत के संबंध में अरुण कुमार बताते हैं कि मोटर, पंप, इंजन खरीदने के अलावा बोरिंग कराने से लेकर पाईप व नोजल में लगभग 35 से 40 हजार की लागत आती है। इस धंधे में अरुण सिंह सरीखे सिकंदर सिंह, कुमोद मंडल, मुन्ना सिंह आदि दर्जनों लोगों का कहना है कि रोजगार तलाशने के लिए प्रदेश जाने और सरकारी योजनाओं के पीछे भागकर अपना समय गंवाने से अच्छा अपना यह रोजगार है। बता दें कि नवगछिया में गाड़ी सर्विसिंग का धंधा पूर्व में महज एक ही जगह एसपी कोठी के समीप हुआ करता था, जो मजदूरों के बाल बूते चलाया जाता था। पर मजदूरी बढ़ने के साथ वहां मजदूर घटते गए और स्थिति यह हुई कि सर्विस सेंटर बंद हो गया।

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

पहाड़ का सीना काट निकाली जीने की राह

जमशेदपुर में कभी दूर-दूर तक बंजर जमीन और सख्त मिजाज पहाड़ ही नजर आता था। आज चारों तरफ हरियाली इठलाती दिखती है। यह चमत्कार किसी सरकारी योजना की बदौलत नहीं, धरती पुत्रों की मेहनत का प्रतिफल है। पटमदा प्रखंड में लायलम पंचायत के वनगोड़ा गांव के ग्रामीणों ने हाड़तोड़ मेहनत कर धरती मां का श्रृंगार किया है। इन्होंने पहाड़ का सीना काट खुद ही जीने की राह निकाली है। गांववालों के श्रमदान से बने तालाब की बदौलत वनगोड़ा समेत पांच गांवों की तकदीर बदल गई है। यहां के किसान इस तालाब के पानी से अपने खेतों को सींच सब्जी और धान पैदा कर रहेहैं। कभी बंजर पड़े रहने वाले खेत अब सोना उगल रहे हैं।

जमशेदपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर दलमा पहाड़ के बीच पटमदा प्रखंड के लायलम वनगोड़ा समेत भुइयांसिनान, मिजुर नाका, कोरता कोल, गोलखेरना व कई अन्य गांवों के लोग खेती के लिए भगवान भरोसे रहते थे। साल में अगर ठीक-ठाक पानी बरसा तो कुछ महीने के लिए दो जून के खाने का इंतजाम हो गया, वरना पेट पर हाथ रखकर सोना पड़ता था। भरपूर फसल न होने के कारण ग्रामीणों को मजदूरी करने के लिए कई-कई महीने तक गांव से दूर भी रहना पड़ता था। वर्ष 2007 में जन संगठन झारखंड मुक्ति वाहिनी के मदन मोहन, अरविंद अंजुम, दिलीप, दिलीप सोरेन, दीपक आदि ने खेती के लिए सिंचाई की आवश्यकता को समझा। इन लोगों ने ग्राम प्रधान देवेंद्र सिंह को श्रमदान से तालाब बनवाने के लिए न केवल प्रेरित किया, बल्कि इसके लिए आवश्यक आर्थिक संसाधन भी जुटाए। इसके बाद ग्राम प्रधान देवेंद्र सिंह की देखरेख में ग्रामीणों ने तालाब की खुदाई शुरू हुई। पहाड़ को काटना आसान काम नहीं था। लेकिन राम प्रसाद टुडू, रूपा टुडू, हाड़ी राम हांसदा, धनंजय सोरेन, गंधेश्वरी टुडू, चांदमुनी, सावंती, श्रीमती हांसदा, लखी राम, भजो हरि, मंगल, सुखराम, रबी लाल, सुखमुनी, फूलमुनी, सूरजमुनी, सुकुरमुनी, पिड़ाकी हेम्ब्रम, बेनाती, लुगु मुनी समेत तमाम ग्रामीणों ने एक साल तक हाड़तोड़ मेहनत के बाद चार-पांच फीट गहरा और 700 फीट की परिधि का गड्ढ़ा तैयार कर लिया। वनगोड़ा के ग्रामीण राम प्रसाद टुडू बताते हैं- लगभग 40 स्त्री-पुरुष रोज आठ से दस घंटे तक खुदाई करते थे। साल भर की मेहनत से तैयार हुए तालाब में वर्षा होने पर पानी भरा। अब वनगोड़ा समेत पांच गांवों के लोग इस तालाब के पानी से अपने खेतों में सिंचाई कर धान और सब्जी उगाते हैं। ग्राम प्रधान देवेंद्र सिंह कहते हैं-तालाब खुदाई के एक वर्ष बाद ही यहां की स्थिति बदल गई। अब वनगोड़ा, मिजुर नाका, भुइयां सिनान, कोरता कोल और गोलखेरना का कोई नवयुवक मजदूरी करने परदेश नहीं जाता। तालाब के पानी से धान और सब्जी पैदा कर गांव के लोग मजे में जीवन गुजार रहे हैं।